मानव का जीवन सभी जीवो की श्रेणी में सबसे उत्तम गुण वाला जीवन माना गया है। हमारा यह मानव जीवन इतने तथ्यों और रहस्यों से भरा पड़ा की जितना खोजें उतना ही विस्तृत होता रहता है। तो इसी कड़ी में आज हम आपको बताते हैं की सूक्ष्म शरीर क्या है सूक्ष्म शरीर कैसे काम करता है और यह किस तरह से हमारे इस भौंतिक शरीर से जुड़ा है।

मानो या न मानो लेकिन जिस तरह हमरी आत्मा दिखती नहीं है लेकिन फिर भी होती है उसी तरह सूक्ष्म शरीर को भी हम आँखों से देख नही सकते केवल अनुभव कर सकते हैं महसूस कर सकते हैं। इसलिए सूक्ष्म शरीर भी होता हैं और अपने भी कभी न कभी जरूर महसूस किया होगा तो चलिए जानते हैं कि
सूक्ष्म शरीर क्या है
सूक्ष्म शरीर स्वयं का वह साधन है जो दुसरे लोको को ज्ञान देता हैं सूक्ष्म शरीर हमारी चेतना का दूसरा रूप है हमारे भौंतिक शरीर जैसा साधारण स्थिति में चेतना हमारे पुरे शरीर में मौजूद रहती है । सोते समय, अनजाने में हम सूक्ष्म शरीर की तरंगो का अनुभव् करर्त हैं इन्हें हम स्वप्न कहते हैं, जागृत अवस्था में हम सूक्ष्म शरीर का अनुभव ध्यान द्वारा कर सकते हैं सूक्ष्म शरीर की यात्रा अंतराल और समय से परे है सचेत अवस्था में अंतराल के अनुभवों के बाद हमें नए अंशो का ज्ञान मिलता है ।
ध्यान में भरपूर विश्व शक्ति मिलने के बाद चेतना जो हमरे पुरे शरीर में फैली हुई है वह एक बिंदु की और जाने लगती है और जब चेतना बढती है तब हमें भौन्तिक शरीर में झटको का अनुभव होता है। ऐसा लगता है जैसे हमारा शरीर तैर रहा हो हमारे हाथ पैर हो ही नहीं और हमें अपना शरीर पंख की तरह हल्का लगने लगता है यह पारलौकिक शक्ति कहलाती है ।
अधिक से अधिक ध्यान करने से हमें अधिक से अधिक विश्व शक्ति मिलती है हमारी चेतना सूक्ष्म शरीर का रूप धारण करके बहुत तेजी से घूमने लगती है जिस से हरकते बढ़ने लगती हैं।इन हरकतों के बाद हमारा सूक्ष्म शरीर भौन्तिक शरीर से बाहर आने लगता है ये दोनों शरीर चंडी जैसी डोर से जुड़े रहते हैं ये चांदी की डोर और कुछ नहीं बल्कि एक तेज़ गति से थडथडाती हुई चेतना है जो भौंतिक शरीर से सूक्ष्म शरीर को और सूक्ष्म शरीर से भौन्तिक शरीर को सन्देश देती रहती है। और इस तरह हम अंतराल का सफ़र तय करते हैं ।
अध्यात्मिक सदगुरु और शिष्य का सम्बन्ध
अंतराल की यात्रा हमरी चेतना की जाने और अनजाने लोको की यात्रा है, अंतराल की यात्रा द्वारा हमें स्वयं के बारे में उच्चतम ज्ञान मिलता है। अंतराल की यात्रा में हमारा सूक्ष्म शरीर सारे भौंतिक तत्वों जैसे पृथ्वी , पानी, अग्नि, वायु, और आकाश के बीच में से गुज़र सकता है सूक्ष्म शरीर सारे लोको के बीच से निर्भीक गुज़र सकता है ।
ध्यान करने वाला व्यक्ति अपने शरीर से बाहर आकार अपने भौंतिक शरीर को देख सकता है इस से उसे उच्चतम बोध होता है वो समझ पाता है की वो शरीर मात्र नहीं बल्कि शरीर में रहता है। यह एक गहन बोध है हर किसी को अंतराल की यात्रा का अनुभव करना चाहिए। अधिक से अधिक यात्रा करने से हमारी सीमायें ख़त्म हो जाएँगी हम जान जायेंगे की हम असीम हैं। केवल इसी अनुभव के द्वारा हम जान जायेंगे की हम ही चेतना हैं हम जान जायेंगे की हम असीम हैं हम जीवन का नया विस्तार जान जायेंगे ।