नार्को टेस्ट
सच में आजकल हम इंसान टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में इतने आगे बढ़ गए हैं जितना हमने कभी सोचा भी नहीं था, मैं अपने हर आर्टिकल में सभी टेक्नोलॉजी के बारे में अलग-अलग एक्सप्लेन करता हूँ पर आज हम बात करेंगे narco test के बारे में, की आखिर यह नार्को टेस्ट क्या है और इसका उसे कब, क्यों और किसलिए किया जाता है तो आइये जानते हैं
नार्को टेस्ट क्या है
नार्को टेस्ट एक ऐसा टेस्ट है, जब किसी मुजरिम को इथेनाल, सोडियम पेंटोथॉल, बार्बिचरेट्स, टेपाजमैन, आदि रासायनिक दवाइयों के इंजेक्शन दिए जाते हैं, कई लोग इसको ट्रुथ ड्रग्स भी कहते हैं क्योंकि यह दवाई इंसान को आधा बेहोश कर देती है, और फिर इंसान सेमी कॉन्सियस स्थिति में चला जाता है यानी ना तो वह पूरी तरह से बेहोश होता है और न ही पूरी तरह से होश में रहता है और जब भी हम इस प्रकार की आधी बेहोशी की हालत में होते हैं तो हम चाह कर भी झूट नहीं बोल पाते, क्योंकि झूठ बोलने के लिए हमको कल्पनाओ का सहारा लेना पड़ता है अपनी तरफ से भी कुछ बातें जोड़नी होती हैं और कुछ बातो को छुपाना होता है इसलिए हमें झूठ बोलने के इए दिमाग का ज्यादा प्रयोग करना पड़ता है और सच बोलने के लिए हमको न कुछ जोड़ना होता है और न ही कुछ छुपाना होता है जो हमने देखा है महसुस किया है वो तो पहले से ही माइंड में रिकॉर्ड रहता है तो हमें सच बोलने के लिए क़म दिमाग का स्तेमाल करना होता है, नार्को टेस्ट को सबसे पहला परिक्षण 1922 में राबर्ट हाउस नामक टेक्सास के डॉक्टर ने दो मुजरिमों पर किया था
का प्रयोग कैसे किया जाता है
नार्को टेस्ट में जिस भी मुजरिम से पूछताछ करनी होती है पहले उसकी उम्र और स्वस्थ्य देखा जाता है उसके बाद तय होता है की उसके अनुसार उसपर कौन के रासयन का प्रयोग करना सही होगा, यदि दवाई गलत हुई तो इंसान की मौत या फिर इंसान के दिमाग पर बुरा असर भी पड़ सकता है इसलिए उम्र और स्वस्थ्य के आधार पर ही उसको इंजेक्शन दिया जाता है,इस से पहले उसको शरीर को दो मशीनों से जोड़ा जाता है
1. पॉलीग्राफ मशीन –
जब किसी मुजरिम का नार्को टेस्ट किया जाता है तब पॉलीग्राफ मशीन उसका रक्तचाप, नब्ज, सांसों की गति, ह्रदय की गति, और उसके शरीर में होने वाली गतिविधियों को को रिकॉर्ड करता है और दर्शाता है फिर मुजरिम से कुछ आम सवाल पूछे जाते हैं जिनको वह झूठ नहीं बोल पाता, जैसे उसका नाम, उसके माता पिता का नाम, उसके घर का एड्रेस, वह क्या काम करता है उसकी उम्र क्या है और इस तरह से सवाल जवाब का एक फ्लो बनता है और फिर धीरे धीरे उसको वे सवाल पूछे जाते हैं जिनको insvestigation officers जानना चाहते हों और इस तरह से मुर्जिम सच उगल देता है
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हालाँकि कुछ विशेषज्ञों का मनना है की सेमी कॉन्सियस यानि आधी बेहोशी की हालत में भी कुछ मुजरिम झूट बोल जाते हैं मगर ऐसा सिर्फ 5% ही चांस हैं जब वे झूट बोल सके वेरना ज्यादातर केस में वे सच ही बोलते हैं
2. ब्रेन मैंपिंग टेस्ट
ब्रेन मैंपिंग टेस्ट का आविष्कार अमेरिकी न्यूरोलॉजिस्ट डॉ लारेंस ए फारवेल ने 1962 में अमेरिका स्थित कोलंबस स्टेट अस्पताल किया था. और आज इस परिक्षण का बहुत सी जगहों पर प्रयोग किया जाता है यह एक ऐसा टेस्ट है जिसमे किसी संदिग्ध इंसान को कंप्यूटर से जुदा एक हेलमेट पहनाया जाता है जिसमें सेंसर लगे होते हैं और ये सेंसर दिमाग में होने वाली साड़ी हलचल को रिकॉर्ड करता है और उस हलचल की P300 Wav के जरिये स्क्रीन पर दिखाता है. Brain Mapping के दौरान मुजरिम को तरह तरह की आवाजें सुनाई जाती हैं और उसके आगे रखी एक बड़ी सी स्क्रीन पर कुछ फोटो और वीडियो दिखाए जाते हैं फिर जिस केस में वह संदिग्ध पकड़ा गया है उसको उस से सम्बंधित विडियो दिखाए जाते हैं और यदि अपराध से सम्बंधित आवाजो को या किसी सीनल को पहचानता हो तो ये P 300 तरंगे स्क्रीन पर दिखाई देती हैं जबकि एक निर्दोष अपराधी इनको पहचान नहीं पाता और ये तरंगे उत्पन्न नहीं होती हैं
फाइनल वर्ड्स
तो दोस्तों आपको पता चल गया होगा कि नार्को टेस्ट (narco test ) क्या होता है नार्को टेस्ट के साथ आपको ब्रेन मैपिंग (brain mapping) के बारे में भी पता चल गया है तो उम्मीद करता हूँ की आपको यह लेख पसंद आया हो
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